“मुंह पर मीठी बातें, बगल में टैरिफ़ का वार: ट्रंप की नीतियों के बीच भारत की चाबहार रणनीति”

भारत-अमेरिका रिश्तों की कहानी हमेशा से थोड़ी उलझी रही है। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में इसे और पेचीदा बना दिया। एक तरफ मंच पर मोदी के साथ “Howdy Modi” जैसी शानदार तस्वीरें थीं, तो दूसरी तरफ व्यापार युद्ध, आयात शुल्क और वीज़ा पाबंदियों की तलवार। मीठी बातों का आवरण था, मगर पीछे टैरिफ़ का वार लगातार भारत की पीठ पर पड़ता रहा।

इसी बीच भारत ने ईरान में अरबों डॉलर का निवेश करके चाबहार पोर्ट को आगे बढ़ाया। यह बंदरगाह पाकिस्तान में चीन के सहयोग से बन रहे ग्वादर पोर्ट का सीधा जवाब था। अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच बनाने के लिए भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, यही इसकी सबसे बड़ी रणनीतिक अहमियत है।मामला यहीं तक सीधा नहीं था। अमेरिका और ईरान के रिश्ते हमेशा तल्ख़ रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने तो ईरान पर और भी कड़ी पाबंदियां लगा दी थीं। इसके बावजूद भारत को चाबहार प्रोजेक्ट में काम करने की छूट दी गई, क्योंकि वॉशिंगटन भी जानता था कि यह बंदरगाह अफगानिस्तान की स्थिरता और चीन-पाकिस्तान गठजोड़ के जवाब में जरूरी है।

फिर भी ट्रंप के रवैये ने भारत को भरोसे की दुविधा में डाल दिया। सामने मीठे शब्द, पीछे व्यापार पर चोट—इस विरोधाभास ने भारत को यह सोचने पर मजबूर किया कि क्या अमेरिका सचमुच भरोसेमंद साझेदार है। भारत के सामने चुनौती यह थी कि वह अमेरिका के साथ साझेदारी भी बनाए रखे और ईरान-रूस जैसे पुराने सहयोगियों से दूरी भी न बनाए। यही multi-alignment diplomacy का असली खेल था।

भारत के लिए सबक साफ है। सिर्फ मीठी बातों और मंच की चमक पर भरोसा नहीं किया जा सकता। रणनीति उसी देश की टिकती है, जो दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखकर फैसले ले। चाबहार में निवेश सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्र कूटनीति और भू-राजनीतिक मजबूरी का प्रतीक है। ट्रंप के टैरिफ़ टैन्ट्रम ने यह याद दिला दिया कि अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में भरोसा नहीं, बल्कि हित ही स्थायी होते हैं।

1. ट्रंप की नीतियों का विरोधाभास:

  • सार्वजनिक मंचों पर ट्रंप भारत की तारीफ़ करते थे—मोदी के साथ Howdy Modi जैसे इवेंट इसका उदाहरण हैं।

  • लेकिन साथ ही वे टैरिफ (आयात शुल्क), वीज़ा शुल्क और व्यापार संतुलन के नाम पर भारत पर दबाव डालते रहे।

  • यानी “मुंह पर मीठी बात, बगल में टैरिफ का आघात” वाली स्थिति।

2. चाबहार पोर्ट का महत्व:

  • यह ईरान में स्थित बंदरगाह है, जिसमें भारत अरबों डॉलर निवेश कर रहा है।

  • इसका मुख्य मक़सद पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट (जो चीन के सहयोग से बन रहा है) का विकल्प खड़ा करना और अफगानिस्तान व मध्य एशिया तक बिना पाकिस्तान के पहुंच बनाना है।

  • अमेरिका और ईरान के रिश्ते खराब होने के बावजूद, ओबामा और ट्रंप—दोनों प्रशासन ने भारत को विशेष छूट दी, ताकि भारत ईरान में इस प्रोजेक्ट को जारी रख सके।

3. रणनीतिक पेच:

  • भारत को अमेरिका की टेक्नोलॉजी, बाज़ार और सुरक्षा सहयोग चाहिए।

  • साथ ही भारत को ईरान और रूस जैसे देशों से ऊर्जा व भू-राजनीतिक संतुलन भी साधना है।

  • ट्रंप का टैरिफ और वीज़ा नीति भारतीय आईटी सेक्टर और निर्यातकों के लिए समस्या बनी।

4. भारत की चुनौती:

  • भारत को अमेरिका के साथ रिश्ते बनाए भी रखने हैं और ईरान-रूस जैसे साझेदारों से भी दूरी नहीं बनानी।

  • यह multi-alignment diplomacy है, यानी हर किसी से अपने हित साधना।

  • ट्रंप की अनिश्चित नीतियों ने भारत को यह सोचने पर मजबूर किया कि “सिर्फ अमेरिका पर भरोसा करना जोखिम भरा है।”

👉 कुल मिलाकर, चाबहार भारत के लिए “रणनीतिक ज़रूरत” है और अमेरिका पर “राजनीतिक विकल्प” की तरह भरोसा करना पड़ता है। लेकिन ट्रंप के टैरिफ और टैन्ट्रम ने भारत को साफ़ संदेश दिया—“सिर्फ़ मीठी बातों पर नहीं, बल्कि ज़मीनी हकीकत और अपने दीर्घकालिक हितों पर ध्यान देना होगा।”

 

 

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