मोदी युग में जाति की राजनीति का अंत? क्षत्रपों की सत्ता को चुनौती देने वाला विकास नैरेटिव”

मोदी ने क्या‑क्या किया है जो पारंपरिक क्षत्रपों (यानी जाति आधारित राजनीतिक मालिकों) के लिए चुनौती बना

 

  • विकास और कल्याण की नीति पर जोर:
    मोदी सरकार ने जन‑कल्याण योजनाएँ, बुनियादी सुविधाएँ, इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वच्छता, स्वास्थ्य, आवास, बिजली, पानी इत्यादि पर काम किया। ये ऐसी जरूरी चीजें हैं जो आम जनता के जीवन को प्रभावित करती हैं, और ये सिर्फ एक विशेष जाति या समुदाय तक सीमित नहीं होती। इस तरह जनता को यह संदेश गया कि “विकास राजनीति” ज्यादा मायने रखती है बनाम सिर्फ जातीय गणित।

  • सामाजिक इंजीनियरिंग और समावेशी दृष्टिकोण:
    बीजेपी/मोदी नेतृत्व ने यह प्रयास किया है कि दलित, ओबीसी, आदिवासी आदि समुदायों को अपनी राजनीतिक रणनीतियों में शामिल किया जाए, सिर्फ सिम्बॉलिक रूप से नहीं बल्कि प्रतिनिधित्व और नीति बनाने में। उदाहरण स्वरूप, ओबीसी आरक्षण में बदलाव, NCBC को संवैधानिक दर्जा देना आदि।

  • पहचान और रुझान बदलना (Narrative shift):
    मोदी और BJP ने यह रुझान दिखाया है कि जाति‑विरोधी या जाति‑से कटकर एक “राष्ट्रीय एकता, हिन्दू एकता, राष्ट्र‑वाद / देशभक्ति” आदि एजेंडा को बढ़ावा देना उनका एक राजनीतिक धुरी है। जाति‑आधारित विभाजन को “विभाजनकारी” बताया जाता है, और सरकारी और पार्टी प्रचार में यह जोर दिया जाता है कि हम सभी हैं, विकास के हकदार हैं न कि जाति के आधार पर।

  • निर्णायक नेतृत्व (Strong Leadership) और साख का निर्माण:
    मोदी के नेतृत्व को “करिश्माई”, निर्णायक (“decisive”) माना गया है, जिससे जनता में यह विश्वास बढ़ा कि सत्ता‑व्यवस्था बदल सकती है और कि पारंपरिक जाति‑क्षेत्राधिकारों के मालिक (क्षत्रप) हमेशा वर्चस्व नहीं बनाए रख सकते। इससे कई जाति‑नेताओं की राजनीतिक पकड़ कमजोर हुई।

  • राजनीति की प्राथमिकता: वोट बैंक से मुद्दों पर:
    वोट बैंक बनाने की बजाय मुद्दों (development, अपराध, गरीबी, स्वास्थ्य) को राजनीतिक विमर्श में प्रमुख करना। चुनावों में जहाँ जाति‑सम्बंधित प्रदर्शन होते रहे हैं, वहीं यह कोशिश की गई कि विकास की योजनाएँ, जनसुविधाएँ और योजनाओं की पैक्टिकली पहुँच ज़्यादा हो।

  • चुनावी रणनीतियाँ—मुख्यमंत्री चयन आदि:
    जैसे कि आपने उदाहरण देखा कि हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड आदि राज्यों में गैर‑प्रधान जातियों (non‑dominant castes) के नेताओं को मुख्यमंत्री पद देना। इस तरह की “घरेलू संतुलन” या विभिन्न समुदायों को सौंपे जाने वाले प्रतिनिधित्व से यह संदेश गया कि सिर्फ किसी एक जाति का मालिकाना नहीं चलेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 साल के हो गए हैं. नरेंद्र मोदी के रूप में बीजेपी को एक करिश्माई नेता मिला, जिसे पार्टी ने अपने नारे और केंद्र में रखकर गढ उसका सियासी लाभ उसे मिला. नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल और हिंदूवादी चेहरे ने देशभर में जातिवादी राजनीति की दीवार तोड़ दी, जिसके चलते कई सियासी क्षत्रपों की सियासत हाशिए पर चली गई.

 

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